गुड़ी ( Gudi ) ( एक सामाजिक, सांस्कृतिक संगठन, रायगढ़, छत्तीसगढ़) (लोकरंग-2010/ 2013/2018) गुड़ी कला और नाटक को समर्पित एक सामाजिक.सांस्कृतिक संस्था है। छत्तीसगढ़ी में गुड़ी का अर्थ है गांव का वह केन्द्रीय स्थान जहां गांव के लोग एकत्र और संगठित होकर अपने गांव के विकास के बारे में लोकतान्त्रिक तरीके से रचनात्मक नीतियां बनाते…
Author: Anurag
सूत्रधार
सूत्रधार (लोकरंग-2009/ २०१३) आजमगढ़ की सांस्कृतिक इकाई सूत्रधार ने विगत कुछ वर्षों से जन नाट्य संस्कृति को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । इस संस्था के निदेशक अभिषेक पांडेय हैं । लोकरंग 2009 में इस संस्था ने सर्वेश्वर दयाल सक्सेना कृति-हवालात का मंचन किया था । वर्ष २०१३ में इस संस्था ने ‘गूंगी…
इप्टा
1-भारतीय जन नाट्य संघ, आजमगढ़ (लोकरंग 2009) इप्टा,आजमगढ़ का गठन लगभग 15 वर्ष पूर्व किया गया था । प्रगतिशील संस्कृति की हिफाजत में संलिप्त इप्टा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । पूर्वांचल के कहरवा नृत्य, जांघिया नृत्य,धोबियाऊ नृत्य, बिरहा और जोगीरा को संरक्षित करने में इप्टा की टीम ने सराहनीय कार्य किया है ।…
अलख कला समूह
अलख कला समूह ( Alakh Kala Samuh ) (लोकरंग-2008) यह गोरखपुर की नाट्य इकाई है । इसका गठन वर्ष 2008 में कामरेड आरिफ अजीज लेनिन द्वारा किया गया था । लोकरंग2008 में अलख कला समूह ने अपनी पहली प्रस्तुति -`इंकलाब,जिंदाबाद´ नाटक प्रस्तुत किया । यह मूलत: जनपक्षधर सांस्कृतिक संगठन है । इस संगठन ने प्रेमचंद…
दस्ता
दस्ता नाट्यमंच(क्राफ्ट की नाट्य इकाई) (Dusta Natya manch) (लोकरंग-2008) दस्ता नाट्य मंच का गठन 1995 में बनारस में किया गया था । हिरावल की तरह दस्ता नाट्य मंच भी स्वयं को प्रगतिशील जनसंस्कृति के संवर्द्धन के लिए कार्यरत है । हर प्रकार की पतनशील संस्कृति के विरोध में दस्ता ने अपनी प्रस्तुतियों में आमजन की…
हिरावल
हिरावल ( Hiraval ) (लोकरंग 2008, 2009) हिरावल नाट्य मंच ,पटना का गठन वर्ष 1981 में जनप्रतिरोध की संस्कृति के संरक्षण,संवर्द्धन के लिए किया गया था । संस्था ने अपनी अब तक की तमाम प्रस्तुतियों के आधार पर प्रगतिशील संस्कृति को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । पिछले साल अपनी स्थापना के 25…
कबीर गायन टीम , देवास
दयाराम सारोलिया , देवास , मध्यप्रदेश की टीम ने लोकरंग 2015 और 2018 में कबीर गायन प्रस्तुत किया था. देवास के कबीर गायकों की एक शानदार परम्परा मौजूद है जो कबीर के पदों को सूफियाना अंदाज में प्रस्तुत करते हैं .