गुड़ी ( Gudi )
( एक सामाजिक, सांस्कृतिक संगठन, रायगढ़, छत्तीसगढ़)
(लोकरंग-2010/ 2013/2018)
गुड़ी कला और नाटक को समर्पित एक सामाजिक.सांस्कृतिक संस्था है। छत्तीसगढ़ी में गुड़ी का अर्थ है गांव का वह केन्द्रीय स्थान जहां गांव के लोग एकत्र और संगठित होकर अपने गांव के विकास के बारे में लोकतान्त्रिक तरीके से रचनात्मक नीतियां बनाते हैं । इस तरीके से गुड़ी के सभी सद्स्य अपने आस.पास के परिवेश की की निष्ठापूर्वक सेवा के प्रति समर्पण व्यक्त करते हैंए साथ ही नाट्य. गतिविधियों के माध्यम से अपनी सहज भावनाओं को भी अभिव्यक्त करते हैं। यह संस्था छत्तीसगढ़ की लोककलाओं और तमाम नाट्य रूपों को आगे बढ़ाने में सक्रिय है। संस्था पड़ोसी राज्यों के साथ सांस्कृतिक सम्बंधों को बढ़ावा देने के लिए सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों को समर्थन देती है।
यह समूह इस क्षेत्र की तमाम लोक और निजंधरी कथाओं पर आधारित अनेक प्रस्तुतियां करता आया है। गुडी इस क्षेत्र के अनेक लोकनाट्य रूपों को खास महत्व देते हुए उनके तत्वों को अपनी प्रस्तुतियों में समाहित करता है। रानी दाईए बाबा पाखण्डीए मधुशालाए समूह की सबसे प्रशंसनीय प्रस्तुतियां रही हैं जिन्हें भारत की विभिन्न संस्थाओं द्वारा आयोजित नाट्य उत्सवों में मंचित किया गया।
निर्देशक के बारे में
डा0 योगेन्द्र चौबे इन्दिरा कला संगीत विश्विद्यालय के नाटक विभाग में व्याख्याता और उस विभाग के संस्थापक शिक्षकों में हैं। उन्होंने ‘डिज़ाइन’ में विशेषग्यता के साथ राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। छत्तीसगढ़ की देवार जनजाति पर उनके काम के लिए उन्हें राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की अध्येतावृत्ति प्राप्त हुई।
डा. चौबे के पास नाटक और रंगमंच के क्षेत्र में देश-विदेश की तमाम मूर्धन्य हस्तियों के साथ काम करने का समृद्ध अनुभव है. उन्होंने ‘बाबा पाखण्डी’ के अलावा भी अनेक नाटकों का निर्देशन किया है जो काफ़ी प्रशंसित हुए. कला निर्देशक के बतौर डा.चौबे ने दूरदर्शन, नई दिल्ली के लिए “धरती अब भी घूम रही है ” नामक टेलीफ़िल्म का निर्माण किया. उन्होंने ‘साहिया’ नामक फ़िल्म का स्क्रीनप्ले तैयार किया जिसका सन 2009 में ‘ब्लैक इंट्रनेशनल फ़िल्म फ़ेस्टिवल, बर्लिन’ के लिए चयन किया गया.
बाब पाखंड़ी (Baba Pakhandi )
यह नाटक छत्तीसगढ़ की एक लोककथा पर आधारित है.नाटक की अन्तर्वस्तु गम्मत शैली में घुलाकर पेश की गई है. गम्मत छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य का एक रूप है जिसमें समकालीन घटनाओं का आधार लेकर चलनेवाली नाट्यवस्तु को हास्य-व्यंग्य की शैली में प्रस्तुत किया जाता है. गम्मत में कभी भी मिथकों की परंपरागत ढंग से पुनरावृत्ति नहीं होती. उसकी विषयवस्तु दर्शकों के सम्मुख जीवन में की गई गलतियों का अहसास कराने पर ज़ोर देती है. इन सभी चीज़ों का ध्यान रखते हुए निर्देशक समकालीन समाज में प्रचलित उन अंधविश्वासों को ध्यान में लाता है जिनके चलते लोग धोखेबाज़ों के धोखे पर यकीन करते हैं.
नाटक की अन्तर्वस्तु और अभिव्यक्ति शैली सिर्फ़ समकालीन समस्याओं का जवाब पाने के लिए नहीं, बल्कि दर्शकों के मनोरंजन के ध्येय से भी नियोजित है.
लोकरंग २०१३ में संस्था ने उजबक राजा तीन डकैत नाटक प्रस्तुत किया.
नाटक-उजबक राजा तीन डकैत (हैंस क्रिश्चियन एंडरसन की कथा-‘द एम्परर्स न्यू क्लाथ्स’ पर आधारित )
यह नाटक बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा कुटीर धंधों पर किये जा रहे हमलों और समकालीन राज्य व्यवस्था से इनके नापाक गठजोड़ को व्यंग्यात्मक शैली में प्रस्तुत करता है ।
2018 में इस संस्था ने मुंशी प्रेम चंद की कहानी-बड़े भाई साहब का , कहानी का नाटक शैली में नाट्य रूपान्तरण प्रस्तुत किया ।