लोकरंग सांस्कृतिक समिति की विचारघारा
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- यह एक जनपक्षधर,प्रगतिशील विचारधारा में यकीन करने वाला संगठन है ।
- यह दूसरे समान विचारधारा के किसी भी संगठन के प्रति मित्रवत संबंद्ध रख सकता है और अपनी कार्यकारिणी के निर्णय के आधार पर संयुक्त पहलकदमी ले सकता है ।
- यह संगठन किसी भी दलगत राजनैतिक पार्टी के करीब नहीं है ।
- इसकी विचारधारा को धर्म, भाषा, जाति और क्षेत्रवाद के आधार पर बांटा नहीं जा सकता ।
- संस्था के संविधान 4 के अनुसार संस्था का उद्देश्य है –
क-लोक कला, लोक साहित्य, लोककथा, लोकगाथा, लोक संस्कृति, लोक संगीत( गायन,वादन एवं नृत्य ) का अध्ययन, संवर्द्धन, संरक्षण और अनुसंधान करना ।
ख-देश के बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों, लोक कलाकारों को विभिन्न कार्यक्रमों में आमन्त्रित करना, उनकी प्रतिभा, विचारों और कार्यों का प्रचार -प्रसार करना ।
ग- लोक कला, संगीत, साहित्य को समर्पित `लोक-रंग´ पत्रिका का प्रचार-प्रसार करना ।
घ-लोक संस्कृति से जुड़े विषयों पर विचार गोष्ठियां आयोजित करना ।
ड.- जनोपयोगी लोकगीतों , फिल्मों, कविताओं की पोस्टर प्रदर्शनी आयोजित करना ।
च-अंधविश्वास, अश्लीलता, पाखण्ड, पतनशीलसाहित्य, साम्प्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्रवाद, अपसंस्कृति का निषेध करना और जनसामान्य के बीच प्रगतिशील, संवेदनशील संस्कृति का विकास करना ।
इस प्रकारः-
– लोकरंग सांस्कृतिक समिति, लोक संस्कृतियों के संवर्द्धन, संरक्षण के लिए कार्यरत है । विगत 16 वर्षों से हमने लगभग 1600 से अधिक लोक कलाकारों को, जो व्यावसायिक नहीं हैं, जो गावों में खेती-किसानी करते हैं और अपने दुखःसुख भुलाने के वास्ते गीत और संगीत में अपनी पीड़ा व्यक्त करते हैं, को मंच प्रदान किया है ।
– लोकरंग सांस्कृतिक समिति कोई व्यावसायिक संगठन नहीं है यह जनता का संगठन है जो जनता के सहयोग से चलाया जाता है । आप भी इसमें शामिल हो सकते हैं बशर्ते कि आप धर्म, भाषा, क्षेत्र, जाति के आधार पर किसी से नफरत, भेद-भाव न बरतते हों । आपका प्रगतिशील विचारधारा में विश्वास हो ।
– लोकरंग सांस्कृतिक समिति भोजपुरी संस्कृति के उच्च आदर्शों से समाज को परिचित कराना चाहती है न कि फूहड़पन से । हमारा मानना है कि भोजपुरी गीतों को फूहड़पन की पहचान, मुम्बईया फिल्मों और व्यावसायिक लोगों ने दी है । भोजपुरी गीतों में दर्शन, संवेदना और मानवीय संदेश भरे पड़े हैं । लोकरंग सांस्कृतिक समिति ने अपने मंच पर भोजपुरी के तमाम संवेदनात्मक गीतों को मंच प्रदान किया है। देश के अन्य प्रान्तों की लोक गायकी एवं लोक नाटकों की टीमों को भी मंच प्रदान किया गया है l विदेशों में जा बसे भारतीय मूल के गायकों को भी इस आयोजन में बुलाया जाता रहा है बशर्ते कि वे हवाई जहाज का किराया खुद वहन कर सकें।
– प्रकाशन के क्षेत्र में लोकरंग सांस्कृतिक समिति ने `लोकरंग-1´, ‘लोकरंग-2’ लोकरंग -3 और लोकरंग-4 पुस्तकों एवं ‘लोकरंग 2010’, ‘लोकरंग 2011’, ‘लोकरंग 2012’, ‘लोकरंग 2013’, ‘लोकरंग 2014’, लोकरंग 2015, लोकरंग 2016, लोकरंग 2018 , लोकरंग 2019 और लोकरंग 2021 पत्रिकाओं के माध्यम से अपनी शुरुआत की है जिसमें लोक संस्कृतियों के विविध पक्षों को उकेरने वाले देश के श्रेष्ठ रचनाकारों की रचनाएं प्रकाशित हैं । सभी पत्रिकाएं मात्र 50 रुपये प्रति खरीदी जा सकती हैं । `लोकरंग-1´ पुस्तक मात्र 150 रुपए में, ‘लोकरंग-2’ मात्र रु0 200 में, ‘लोकरंग 3 रु . 200 में और लोकरंग -4 रु. 200 में Amazon.in से खरीदी जा सकती हैं ।`लोकरंग-1, और लोकरंग-2 पुस्तकें, छपरा विश्वविद्यालय और वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा के एम0ए0 भोजपुरी पाठ्यक्रम में शामिल हैं तथा इन पर तमाम शोध कार्य हुए हैं ।
– हम लोकगीतों के संग्रह का काम कर रहे हैं । पूर्वांचल में मुहर्रम के अवसर पर गाए जाने वाले झारी या ठकरी गीतों को पहली बार प्रकाशित किया गया है ।
– लोकरंग सांस्कृतिक समिति गुमनाम लोक कलाकारों की खोज कर रही है । हमने ऐसे ही एक गुमनाम लोक कलाकार, ‘रसूल’ की खोज की है, जिनको अभी तक भुला दिया गया था। हमने क्षेत्र के लोक कलाकारों के बारे में भी सामग्री प्रकाशित की है ।
ऐसे समय में, जब हमारी सोच, संवेदना, संस्कृति और भाषा को मिटाने या उन्हें बाजारू बनाने का कुचक्र जारी है, हम सभी संवेदनशील नागरिकों से अपील करते हैं कि हमारे इस अभियान में सहयोग दें । आप निम्नलिखित प्रकार से हमारा सहयोग कर सकते हैं –
1-´लोकरंग´ के आयोजन के लिए अपने सुझाव, अपने आसपास के महत्वपूर्ण लोक कलाकारों, उनकी टीमों और लोक संस्कृतियों के बारे में जानकारी उपलब्ध करा सकते हैं।
2-गुमनाम महत्वपूर्ण लोक कलाकारों के बारे में या लोक संस्कृतियों के विविध पक्षों को उजागर करने वाले शोधात्मक लेखों को उपलब्ध करा सकते हैं ।
3- आप लोकगीतों के संग्रह में सहयोग कर सकते हैं । हम लोक संस्कृतियों के क्षेत्र में काम करने वाले लेखकों, संस्थाओं को आगामी आयोजन में सादर आमंत्रित करना चाहते हैं । इसके लिए जरूरी है कि आप अपनी सहभागिता के संबंध में पूर्व पत्रव्यवहार कर लें । ऐसे जनपक्षधर संगठन, जो भाषा, धर्म, वर्ग और क्षेत्रीयता के आधार पर नफरत न फैलाते हों, उनका सहयोग लिया जा सकता है ।