1-भारतीय जन नाट्य संघ, आजमगढ़ (लोकरंग 2009)
इप्टा,आजमगढ़ का गठन लगभग 15 वर्ष पूर्व किया गया था । प्रगतिशील संस्कृति की हिफाजत में संलिप्त इप्टा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । पूर्वांचल के कहरवा नृत्य, जांघिया नृत्य,धोबियाऊ नृत्य, बिरहा और जोगीरा को संरक्षित करने में इप्टा की टीम ने सराहनीय कार्य किया है । इस संगठन के संरक्षक हैं -हरमंदर पांडे़य और सुनील कुमार दत्ता ।
2-भारतीय जन नाट्य संघ, पटना ( IPTA, Patna )
(लोकरंग-2010 और 2015 )
वर्ष 1947 में स्थापित इप्टा(पटना) ने अपने प्रदर्शनों, एवं प्रस्तुतियों द्वारा जनता के सुख-दुख, आशा एवं आकांक्षाओं को प्रतिबिम्बित किया है । एक लम्बे समय तक इप्टा(पटना) की पहचान गायन, नृत्य और नाट्य टीम के रूप में रही है । इप्टा(पटना) ने अपने नुक्कड़ नाटकों से बिहार रंगमंच को नई ऊर्जा दी है । विभिन्न राष्ट्रीय समारोहों में प्रतिष्ठा हासिल की है तथा लगातार दो बार केन्द्रिय संगीत एवं नाटक अकादमी द्वारा आयोजित महोत्सवों में स्थान पाया है । इप्टा(पटना) ने बिहारीयत की विशिष्ट पहचान और उनके आत्मगौरव के लिए सांस्कृतिक अभियान का सूत्रपात किया है ।
इप्टा की प्रस्तुति
नाटक-गबरघिचोरन के माई
निर्देशन-तनवीर अख्तर ।
नाटक का कथासार-प्रस्तुत नाटक भिखारी ठाकुर के दो नाटकों-गबर-घिचोर तथा बिदेशिया पर आधारित है जो ग्रामीण समाज की स्त्रियों की दशा को केन्द्र में रखकर लिखा गया है । भिखारी ठाकुर ने भोजपुरी संस्कृति के लोकतत्वों का इस्तेमाल कर परदेसी पति के विरह में रहने वाली स्त्री की पीड़ा को व्यक्त किया है । रोजगार के अभाव में ग्रामीण युवकों का परदेश पलायन और उनकी व्याहता स्त्री की दुर्दशा आज भी गांवों में देखने को मिलती है । युवक गलीज अपनी ब्याहता को छोड़कर परदेश चला जाता है और पन्द्रह वर्षों तक अपनी पत्नी की सुध नहीं लेता । इस बीच उसकी पत्नी से पैदा होता है-गबरघिचोर । जब गबरघिचोर बड़ा होता है तब उसे शहर ले जाने के मकसद से गलीज गांव आता है । गबरघिचोर अपनी मां को छोड़कर शहर जाने से मना करता है । गलीज की बहू भी विरोध करती है । इस बीच गड़बड़िया भी गबरघिचोर पर अपना दावा पेश करता है । मामला गांव के पंच तक जाता है ।