बाउल गान- बंगाल के ‘बाउल’ गायन की संस्कृति एवं परंपरा बहुत पुरानी है। इसकी शुरुआत नदी की धारा और समुन्दर के सफर से होती है। कहा जाता है कि बाउल, पूर्वी बंगाल से पश्चिम बंगाल आने-जानेे वाले जहाजों पर सवार मुसाफिरों को अपने गायन से भक्ति-भाव में डुबो देते थे।
बाउल गायकी में एक ओर राम-कृष्ण से संबंधित धार्मिक भाव छुपे होते हैं तो दूसरी ओर कबीर के फक्कड़पन का प्रवाह होता है। पहले सन्यासी के भेष में ‘बाऊल’ मूलतः बंगलादेशी मुसलमान हुआ करते थे जो अपनी रोजी-रोटी के लिये इस पार से लेकर उस पार तक महीनों समुद्री लहरों के संग अपनी गायकी का बेहतरीन नमूना पेश करते थे।
लोकरंग २०१५ में शामिल बरून दास ‘बाउल’ ने बाउल गायन में अपनी अलग पहचान बनायी है। इन्होंने बंगाल के अलावा असम, केरल, त्रिपुरा, दिल्ली और मुम्बई में भी कार्यक्रम पेश किया है।