लोकरंग 2011 की प्रस्तुतियां
दो दिवसीय नाट्य • क्षेत्रीय लोक कलाकारों की प्रस्तुतियां-सोहर, कजरी, निर्गुन और भोजपुरी लोकगीत ।
• बुन्देलखण्डी कछवाहा अवधूत शब्द(अनहद) और आल्हा गायन ।
• अवधी लोक समूह द्वारा फरुवाही लोकनृत्य (फैजाबाद) ।
• निर्माण कला मंच, पटना की नाट्य प्रस्तुतियां- बिदेसिया और हरसिंगार।
• गोष्ठी-`लोकगीतों में मिथ की प्रासंगिकता´ ।
26-27 अप्रैल 2011
नाटक-बिदेसिया
अवधि : 90 मिनट
नाटक-`बिदेसिया´ के बारे में- दोस्त ने तारीफ कर दी कलकत्ता की तो हमारे नायक मचल उठे कलकत्ता जाने को । उधर नायिका के पैर के महावर अभी फीके भी न पड़े थे कि जुदाई की बात उठा दी गई । नायिका ने सुन रखा था-“पूरब देश में टोना बेसी बा, पानी बहुत कमजोर´´ तब भला वह नायक को जाने कैसे दे ? पर नायक के जिद के आगे उसकी एक न चली । नायक कलकत्ता गया तो नायिका को बिसरा दिया । ना कोई सन्देश, ना चिट्ठी-पत्री । हार कर नायिका ने बटोही बाबा से सन्देश भिजवाया । बटोही बाबा ने कलकत्ता में पाया कि नायक दूसरी कश्ती पर सवार है । वहां उसके दो बच्चे भी हैं । फिर….? जैसे-तैसे नायक रखेलिन को छोड़ वापस घर आया । पर यह क्या र्षोर्षो रखेलिन तो दोनों बच्चों के साथ घर आ धमकी थी । अब क्या होगा ? रखेलिन और नायिका लड़ेंगी-भिड़ेंगी और हार कर मान जायेंगी । पहले रोजी के लिए युवक गांव से शहर जाते थे अब विदेश जाते हैं । ब्रेन माइग्रेशन की यही कहानी है भिखारी ठाकुर के इस बिदेसिया नाटक की ।
पात्र परिचय
मंच पर:-शुभ्रो भट्टाचार्य और सुमन कुमार (सूत्रधार), सुमन कुमार (बिदेसी), शारदा सिंह (प्यारी सुन्दरी), मुस्कान (रखेलिन), अभिषेक शर्मा (बटोही), सन्तोष मेहरा (जोकर), राकेश कुमार (बुढ़िया), स्वरम और रजनीश (बिदेसी के बेटे), शुभ्रो भट्टाचार्य (देवर), मुस्कान, मनोज पटेल, मन कपूर, सुरजीत कुमार, जय भारती (सभी नर्तक), पप्पू ठाकुर और अंजारूल (समाजी), शारदा सिंह, रमेश प्रभात, स्वरम, पप्पू ठाकुर, राजू कुमार (गायन मण्डली), राजेश रंजन (ढोलक/तबला), सन्तोष कुमार (नाल), प्रभाकर (हारमोनिया), खंजड़ी (पप्पू ठाकुर), रंगनाथ सिंह (झाल), जानी (बैंजो), मो0नूर (क्लारिनेट),
नेपथ्य: पप्पू ठाकुर (मंच व्यवस्था), रजनीकान्त पाण्डेय (रूप सज्जा), राकेश कुमार और शारदा सिंह (वस्त्र सज्जा), राजेश सिन्हा (प्रकाश), धनंजय नारायण सिन्हा और डॉ0शैलेन्द्र (प्रस्तुति नियन्त्रक)
नाटक `हरसिंगार´ के बारे में- शिव का प्रिय हरसिंगार का सफेद फूल अपनी अल्पजीविता के लिए प्रसिद्ध है । इस पुष्प की संज्ञा, निजी विशेषता पर नहीं बल्कि दूसरे की पसन्द पर आधारित है । बाजारवाद ने समाज के हर महत्वपूर्ण पद को सतही बनाया है । सबसे गम्भीर मानवीय रिश्ता इस प्रवृत्ति को टटोलने की कोशिश करता है । कलाएं भी इससे अछूती नहीं हैं । खासतौर पर रंगमंच, जो समूह के रिश्तों की कला है ।
यह नाटक अपने बिखरे वितान में इसी पतनशील प्रवृत्ति को टटोलने की कोशिश करता है । पश्चिम के नवधनाढ्य कौतुहल का शमन करने के लिए पारंपरिक रंगप्रयोग का आयोजन हुआ है । पर वित-पोषण की नीयत से शुरू हुई यह प्रक्रिया नाना प्रकार के छल-फरेब से गुजरते हुए एक अद्भुत मानवीय सम्बंधों के भंवर में पड़ जाती है । पारंपरिक लोकनाट्य `डोमकच´ के `हरबिसन दम्पति´ की कथा अन्तत: स्त्री-पुरुष सम्बंधों के कई अनछुये पहलुओं को उजागर करते हुए जीवन की जीत की गाथा में बदल जाती है । शिल्प के स्तर पर नाटक को विश्रृंखल और अव्यवस्थित बनाया गया है ताकि जीवन और कलाओं को जिस अवस्था ने प्रभावित किया है, उसे महसूस किया जा सके ।
2-नाटक: हरसिंगार (लेखक- श्रीकान्त किशोर / संगीत, परिकल्पना एवं निर्देशन- संजय उपाध्याय)।
अवधि-90 मिनट ।
पात्र परिचय
मंच पर:-शुभ्रो भट्टाचार्य (सूत्रधार/नट), शारदा सिंह (सूत्रधार/नटी), राजेश सिन्हा (हरबिसना), अर्चना सोनी (हरबिसनी), सुमन कुमार/ अभिषेक शर्मा (राजा), माधुरी शर्मा (रानी), पप्पू ठाकुर (दरोगा), मन कपूर (सन्तरी), सन्तोष मेहरा (दीवान), पप्पू ठाकुर (व्यापारी), रमेश प्रभात (दलाल), रजनीश रंजन (मलुआ), मनोज पटेल (नर्तक), राजेश रंजन (ढोलक/नाल), जानी (हारमोनिया) ।
नेपथ्य: पप्पू ठाकुर/अंजरूल (मंच व्यवस्था), धनंजय नारायण सिन्हा (रूप सज्जा), शारदा सिंह (वस्त्र सज्जा), पी0के0गुंजन (प्रकाश), अंजरूल/जय भारती (रंग सामग्री), धनंजय नारायण सिन्हा/सुनील कुमार पांडेय और डॉ0शैलेन्द्र (प्रस्तुति नियन्त्रक) ।
प्रथम सत्र
26 अप्रैल 2011
रात्रि 9 `लोकरंग-2´ पुस्तक का लोकार्पण /कार्यक्रम का अनौपचारिक उद्घाटन ।
रात्रि 9.35 से 9.45 कुमारी मीरा कुशवाहा, मीना कुशवाहा, पुष्पा कुशवाहा, संस्कृति गुप्ता और
भारतीय गुप्ता द्वारा सोहर और कजरी गायन ।
रात्रि 9.50 से 10.20 हिरावल द्वारा जनगीतों की प्रस्तुति ।
रात्रि 10.25 से 10.45 पोखर भिण्डा मटिहिनिया, जौरा बाजार के चिन्तामणि प्रजापति, बब्बन
प्रसाद, लाल बिहारी प्रसाद, कैलाश प्रसाद, श्रीराम उपाध्याय द्वारा
खजड़ी वादन एवं निर्गुन गायन ।
रात्रि 10.50 से 11.20 अंटू तिवारी का गायन ।
रात्रि 11.25 से 12.55 निर्माण कला मंच की नाट्य प्रस्तुति : नाटक-बिदेशिया ।
द्वितीय सत्र
27 अप्रैल 2011
प्रात: 11 से अपराह्न 2 बजे तक वैचारिक गोष्ठी
विषय-लोक संस्कृतियों में मिथ की प्रासंगिकता
आयोजन के मुख्य अतिथि, प्रमुख आलोचक एवं जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली के भूतपूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष, प्रो0मैनेजर पाण्डेय सत्र की अध्यक्षता में गोष्ठी हुई । डॉ गोरे लाल चन्देल(भूतपूर्व प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्यालय,खैरागढ़, छत्तीसगढ़), डॉ0 प्रफुल्ल कुमार सिंह`मौन´ (वैशाली) विशिष्ट अतिथि रहे।
सहभागिता
दिनेश कुशवाह (रीडर, हिन्दी विभाग, रीवा विश्वविद्यालय), बजरंग बिहारी तिवारी (वरिष्ठ साहित्यकार एवं आलोचक), मदनमोहन (गोरखपुर), तैयब हुसैन (पटना), मनोज सिंह, कौशल किशोर (संयोजक-जसम, लखनऊ) एवं सभी आमन्त्रित रंगकर्मी और जनपद के अन्य साहित्यकार ।
तृतीय और अन्तिम सत्र
27 अप्रैल, 2011
रात्रि 9.15 10.10 चन्द्रभान सिंह यादव और उनके साथियों का आल्हा गायन (महोबा शैली)
रात्रि 10.15 से 10.45 अवधी लोक समूह, फैजाबाद द्वारा फरुवाही लोकनृत्य । कलाकार-शीतला
प्रसाद वर्मा (मुखिया/निर्देशन), मुकेश कुमार, सतीश कुमार, अजय कुमार,
महेश कुमार (प्रथम), पुष्पेन्द्र कुमार, सुजीत कुमार, शिवदीप मौर्य, विजय
यादव, आकाश कुमार, राजेश कुमार, जान्हवी, शालिनी, महेश कुमार (द्वितीय)
(सभी मंचीय कलाकार), दृग्पाल (नक्कार वादक), राजू रंगीला (हारमोनियम
वादक), विनोद कुमार (बांसुरी वादक), प्रमोद यादव (गायक), दिलीप
शर्मा (नाल/ढोलक वादक)।
रात्रि 10.50 से 11.10 बुन्देली कछवाहा समाज द्वारा अवधूती शब्दों का गायन (गायक-देवी दयाल
कुशवाहा, फूल सिंह, प्रताप सिंह, रामकरन कुशवाहा, बच्चा कुशवाहा,
रामरती कुशवाहा, रीता कुशवाहा और शिवदयाल कुशवाहा । टीम
नेतृत्व-डॉ0रामभजन सिंह, कोरियोग्राफर-जयदेवी ।
रात्रि 11.15 से 11.35 मंगल मास्टर द्वारा भोजपुरी गीतों की प्रस्तुति
रात्रि 11.40 से 1.10 निर्माण कला मंच की नाट्य प्रस्तुति : नाटक- हरसिंगार ।
स्मृति चिन्हों का वितरण / लोकरंग सांस्कृतिक समिति के सदस्यों का
परिचय/ग्रुप फोटोग्राफी ।
सांस्कृतिक कार्यक्रम संचालन-दिनेश कुशवाह, विभागाध्यक्ष, हिन्दी विभाग, रीवा विश्वविद्यालय,रीवा, म0प्र0 । गोष्ठी संचालन-कौशल किशोर, संयोजक, जन संस्कृति मंच, लखनऊ