गिरमिटिया मजदूरों की दर्दनाक कहानी, इतिहास के पन्नों में दर्ज है। उन्न्सवीं सदी में जब पश्चिमी देशों में दास प्रथा खत्म हो गई तो ब्रिटिश उपनिवेशों यथा-फिजी, गयाना, सुरीनाम, मॉरीशस, दक्षिण अफ्रीका आदि स्थानों में दासों की प्रतिपूर्ति के लिए भारतीय मजदूरों को ले जाया गया। अनपढ़ मजदूरों से मात्र अंगूठा लगाकर कलकत्ता, मद्रास और पांडिचेरी से पानी के जहाज में बैठा कर अनजान टापुओं पर ले जाकर पटक दिया गया जो तब ब्रिटिश उपनिवेश के हिस्से थे। उन मजदूरों को एक एग्रीमेंट के तहत विदेश भेजा गया जिसकी जानकारी मजदूरों को न थी। अनपढ़ मजदूर एग्रीमेंट को गिरमिट बोलते थे। तभी से उन मजदूरों को ही गिरमिटिया कहा जाने लगा और मालिकों को गिरमिट। गिरमिटिया प्रथा अंग्रेजों द्वारा सन् 1834 से आरम्भ हुई और सन् 1917 में इसे निषिद्ध घोषित किया गया। एग्रीमेंट के बावजूद पैसे के अभाव में ज्यादातर गिरमिटिया मजदूर अपने वतन वापस न आ सके और सदा-सदा के लिए अपना गांव, घर-परिवार और रिश्तेदारों को छोड़ वहीं बस गये। वहां उन्होंने अपनी भोजपुरी संस्कृति को कुछ हद तक बचा कर रखा और आज भी कुछ कलाकार भोजपुरी गीतों को गाकर पूर्वांचल की संस्कृति से जुड़ाव को जिंदा रखे हुए हैं।