स्वाधीनता संग्राम के दौरान, 27 अप्रैल, 1921 को डिप्टी मजिस्ट्रेट कसया ने जनपद के नायकों, हनुमान प्रसाद कुशवाहा और ब्रह्मदेव शर्मा को 9-9 माह की कैद की सजा सुनाई थी ।
अगले दिन 28 अप्रैल को इस सजा के विरोध में पडरौना रेलवे स्टेशन पर 2000 की भीड़ इकट्ठा हो गई थी । उस दिन दोनों कैदियों को जिला कारागार, गोरखपुर ले जाया जा रहा था ।
स्थानीय निवासी ढालूराम के प्रयास से उपस्थित जनता दोनों बहादुरों के ऊपर फूल वर्षा कर रही थी । 30 अप्रैल, 1921 को तप्ती लाल को भी 9 माह की सजा हुई ।
जब मुकदमा चल रहा था, वहां 10 हजार की भीेड़ इकट्ठा हो गई थी । जब तप्तीलाल को गिरफ्तार किया गया, जनता आक्रोशित हो गई । पथराव की संभावना को देखते हुए पुलिस बंदूकों में गोली भर कर तैयार थी परन्तु एक पंजाबी साधू के प्रयास से जनता शांत हो गई । पंजाबी साधू पर बाद में मुकदमा चला ।
सरकार का मानना था कि जिस प्रभावशाली साधू के बस में 10 हजार जनता हो, वह निश्चय ही खतरनाक आदमी हो सकता है । तप्तीलाल को जब जिला कारागार भेजा जा रहा था तब रेलवे स्टेशन, पडरौना पर 4000 की भीड़ जमा थी । मठिया माफी के मोती भगत पर भी दफा 504 व 352 का मुकदमा 3 मई, 1921 को सुना जाना था लेकिन चार दिन पहले ही, 30 अप्रैल, 1921 को उन्हें गिरफ्तार कर जमानत कराने को कहा गया ।
मोती भगत ने जमानत कराने से इन्कार किया और जेल चले गये । ब्रिटिश औपनिवेेशिक सत्ता को उखाड़ फेंकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले जनपद के इन महान क्रांतिकारियों की याद में हमने ‘लोकरंग 2015’, को समर्पित किया ।