गोरख पांडेय – १९४५-१९८९(Gorakh Pandey)
गोरख पांडेय का जन्म देवरिया जनपद के पंडित के मुड़ेरवा नामक गांव में सन् 1945 में हुआ था । गोरख पांडेय ने 1969 से ही नक्सलवाड़ी आंदोलन के प्रभाव से प्रभावित होकर हिन्दी कविता की अराजक धारा से स्वयं को अलग किया और जनसंघर्षों को प्रेरित करने वाली रचनाएं लिखीं । उनका किसान आन्दोंलन से प्रत्यक्ष जुड़ाव रहा । उनकी कविताएं हर तरह के शोषण से मुक्त दुनिया के लिए आवाज उठाती रहीं । दिमागी बीमारी सिजोफ्रेनिया से परेशान होकर 29 जनवरी 1989 को जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में आत्महत्या कर ली । उस समय वह विश्वविद्यालय में रिसर्च एसोसिएट थे । मृत्यु के बाद उनके तीन संग्रह प्रकाशित हुए हैं -स्वर्ग से विदाई(1989), लोहा गरम हो गया है (1990) और समय का पहिया(2004)
गोरख पांडेय की कुछ कविताएं-
(1)
वे डरते हैं
किस चीज से डरते हैं वे
तमाम धन-दौलत
गोला-बारूद-पुलिस-फौज के बावजूद
वे डरते हैं
कि एक दिन निहत्थे और गरीब लोग
उनसे डरना बंद कर देंगे ।(2)
समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई
समाजवाद उनके, धीरे-धीरे आई
हाथी से आई, घोड़ा से आई
अंगरेजी बाजा बजाई, समाजवाद…………..
नोटवा से आई, वोटवा से आई
बिड़ला के घर में समाई,समाजवाद……….
गांधी से आई, आंधी से आई
टुटही मड़इयो उड़ाई, समाजवाद…….
डालर से आई, रूबल से आई
देसवा के बान्हे धराई, समाजवाद…………
वादा से आई, लबादा से आई
जनता के कुरसी बनाई,समाजवाद………
लाठी से आई, गोली से आई
लेकिन अहिंसा कहाई, समाजवाद…….
महंगी ले आई, गरीबी ले आई
केतनो मजूरा कमाई, समाजवाद……
छोटका के छोटहन, बड़का के बड़हन
बखरा बराबर लगाई, समाजवाद……..
परसों ले आई, बरसों ले आई
हरदम अकासे तकाई, समाजवाद…….
धीरे-धीरे आई, चुपे-चुपे आई
अंखियन पर परदा लगाई
समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई ।