धरीक्षण मिश्र – १९०१-१९९७(Dharikshana Mishra)
तत्कालीन देवरिया और वर्तमान कुशीनगर जनपद के कवि धरीक्षण मिश्र, भोजपूरी के महत्वपूर्ण जनकवि थे । भिखारी ठाकुर की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए धरीक्षण ने घर आंगन, बाग-बगीचों, खेत-खलिहाने में बसे गंवई जीवन की कथा-व्यथा को अपनी गीतों में, बड़ी संवेदनात्मक अभिव्यक्ति दी है । आज जब भोजपुरी गीतों और फिल्मों को फूहड़पन का पर्याय बनाने की घृणित साजिश रची जा रही है, ऐसे समय में धरीक्षण मिश्र के व्यंग्यात्मक भोजपुरी गीत, भोजपुरी की संवेदना, जनपक्षधरता और संवृद्धिता के सुनहरे दिनों की याद दिला रहे हैं । मिश्र का जन्म 1901 में बरियारपुर, तमकुहीराज, कुशीनगर में हुआ था तथा मृत्यु 24 -10-1997 को हुई ।
धरीक्षण मिश्र की कविताओं के कुछ अंश-
कथनी पर करनी फेरात नइखे,
दिमाग गरम रह ता कबो सेरात नइखे,
हर के दुगो बैल कइसे मान होइहें सन
जब एगो बुढ़ गाई घेरात नइखेलोकतंत्र के मानी ई बा,
लोकि, लोकि के खाईं
जिन गिरला के आशा करिहें,
हाथमलत पछताई ए भाई,
अइसन राज ना आई ।