देवेन्द्र कुमार बंगाली – १९३२-१९९१( Devendra Kumar Bangali)
तत्कालीन देवरिया और वर्तमान कुशीनगर जनपद में कवि बंगाली का जन्म,18 जुलाई 1932 को कसया में हुआ था । देवेन्द्र कुमार बंगाली की रचनाएं, गंवई व्यथा को, संवेदना के व्यापक फलक पर उकेरने में सक्षम दिखती हैं । देवेन्द्र कुमार बंगाली की गंवई बोली-भाषा के सधे शब्द, विकास की धूर्तता के सामने तन कर खड़े होने का साहस करते हैं । उसे नंगा करते हैं और बहुत हद तक रगेदते भी हैं । खेद का विषय यह है कि उनकी रचनाओं पर जितना ध्यान दिया जाना चाहिए था, उतना नहीं दिया गया है । उनके प्रकाशित संग्रह हैं -कैफियत (1972), बहस जरूरी है (1980) और एक पेड़ चांदनी (1989) । कवि बंगाली का निधन-18 जून 1991 को हुआ ।
देवेन्द्र कुमार बंगाली की कुछ रचनाएं
हम ठहरे गांव के/बोझ हुए रिश्ते सब/कन्धों के पांव के
भेद-भाव सन्नाटा/ये साही का कांटा
सीने के घाव हुए/सिलसिले अभाव के
सुनती हो तुम रूबी/ एक नाव फिर डूबी
ढूंढ लिए नदियों ने/ रास्ते बचाव के
सीना, गोड़ी, टांगे/मांगे तो क्या मांगे
बकरी के मोल बिके/ बच्चे उमराव केएक पेड़ चांदनी
लगाया है आंगने
फूले तो
आ जाना एक फूल मांगने
ढिबरी की लौ
जैसे लीक चली आ रही
बादल का रोना है
बिजली शरमा रही
मेरा घर छाया है
तेरे सुहाग ने
तन कातिक, मन अगहन
बार-बार हो रहा
मुझमें तेरा कुवार
जैसे कुछ बो रहा
रहने दो
यह हिसाब
कर लेना बाद में।
नदी झील, सागर से
रिश्ते मत जोड़ना
लहरों को आता है
यहां-वहां छोड़ना
मुझको
पहुंचाया है
तुम तक अनुराग ने।हडि्डयों का पुल है
शिराओं की नदी है
इस सदी से भी अलग कोई सदी है
आज की कविता
अंधेरे की व्यथा है
फूली है मटर लाल-लाल
पियराई सरसों के बीच से
उठे कुछ नए सवाल